प्रॉपर्टी खरीदते समय किन-किन शुल्कों का भुगतान करना जरूरी है?

प्रॉपर्टी खरीदते समय किन-किन शुल्कों का भुगतान करना जरूरी है?

1. स्टैम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क

घर या जमीन खरीदने पर सबसे पहले जिन शुल्कों का ध्यान रखना चाहिए, वे हैं स्टैम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क। ये दोनों फीस राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं और हर राज्य में इनकी दरें अलग-अलग हो सकती हैं। जब भी आप प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो इसका लीगल रिकॉर्ड रखने के लिए स्टैम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस देना अनिवार्य होता है।

स्टैम्प ड्यूटी क्या है?

स्टैम्प ड्यूटी एक तरह का टैक्स है, जो प्रॉपर्टी के ट्रांसफर पर सरकार को देना पड़ता है। यह कुल प्रॉपर्टी वैल्यू का एक प्रतिशत होता है, जिसकी दरें हर राज्य में भिन्न होती हैं। बिना स्टैम्प ड्यूटी चुकाए आपकी प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता।

रजिस्ट्रेशन शुल्क क्या है?

रजिस्ट्रेशन शुल्क वह रकम है जो प्रॉपर्टी के दस्तावेज़ को सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए देनी होती है। आमतौर पर यह प्रॉपर्टी कीमत का 1% होती है, लेकिन राज्यों के हिसाब से इसमें भी थोड़ा फर्क आ सकता है।

राज्यवार स्टैम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क (उदाहरण)

राज्य स्टैम्प ड्यूटी (%) रजिस्ट्रेशन शुल्क (%)
महाराष्ट्र 5% 1%
दिल्ली 4-6% 1%
उत्तर प्रदेश 7% 1%
तमिलनाडु 7% 1%
कर्नाटक 5.6% 1%
महत्वपूर्ण बातें:
  • स्टैम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस दोनों ही प्रॉपर्टी ट्रांसफर के समय अनिवार्य रूप से देनी पड़ती हैं।
  • अगर आप इनका भुगतान समय पर नहीं करते हैं, तो प्रॉपर्टी आपके नाम पर ट्रांसफर नहीं होगी।
  • कुछ राज्यों में महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों या अन्य श्रेणियों को छूट भी मिल सकती है। इसके लिए संबंधित राज्य की वेबसाइट जरूर चेक करें।

2. जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर)

जब आप भारत में कोई नया घर या निर्माणाधीन प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो आपको जीएसटी (GST) भी चुकाना पड़ता है। जीएसटी एक प्रकार का टैक्स है जो भारत सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाता है।

जीएसटी कब लगता है?

  • नवनिर्मित प्रॉपर्टी (Newly Constructed Property)
  • निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स (Under Construction Projects)

कब नहीं लगता?

  • पुनर्विक्रय प्रॉपर्टी (Resale Property) – यानी जब आप पहले से खरीदी हुई प्रॉपर्टी किसी से खरीदते हैं, तो इस पर जीएसटी लागू नहीं होता।

जीएसटी की दरें

प्रॉपर्टी का प्रकार जीएसटी दर
सस्ती आवास योजना (Affordable Housing) 1%
अन्य निर्माणाधीन प्रॉपर्टी 5%
ध्यान देने वाली बातें:
  • जीएसटी केवल पहले मालिक को देना होता है, पुनर्विक्रय पर यह चार्ज नहीं किया जाता।
  • यदि आपने रेडी-टू-मूव-इन फ्लैट खरीदा है (जहां कंस्ट्रक्शन पूरा हो चुका है और कम्प्लीशन सर्टिफिकेट मिल गया है), तब भी जीएसटी नहीं लगेगा।

इसलिए अगर आप नई या निर्माणाधीन प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं, तो अपने बजट में जीएसटी चार्ज को भी शामिल करना जरूरी है। इससे आगे चलकर कोई सरप्राइज खर्चा नहीं आएगा।

सामुदायिक विकास शुल्क/संपत्ति टैक्स

3. सामुदायिक विकास शुल्क/संपत्ति टैक्स

जब आप भारत में प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो सिर्फ रजिस्ट्रेशन फीस और स्टाम्प ड्यूटी ही नहीं, बल्कि आपको सामुदायिक विकास शुल्क या संपत्ति टैक्स का भी भुगतान करना पड़ सकता है। यह शुल्क अलग-अलग शहरों और नगर निगमों के अनुसार भिन्न हो सकता है।

सामुदायिक विकास शुल्क क्या है?

कुछ नगर निगम या स्थानीय निकाय जब प्रॉपर्टी का स्वामित्व स्थानांतरित किया जाता है, तब प्रोसेसिंग फ़ीस या विकास शुल्क (Development Charges) लेते हैं। इस शुल्क का उपयोग इलाके के बुनियादी ढांचे जैसे सड़क, सीवर, पानी आदि को विकसित करने के लिए किया जाता है।

प्रॉपर्टी टैक्स क्या होता है?

प्रॉपर्टी टैक्स एक वार्षिक कर है जिसे संपत्ति के मालिक को अपनी संपत्ति पर देना पड़ता है। यह टैक्स स्थानीय नगर निगम या पंचायत द्वारा वसूला जाता है और इसका इस्तेमाल शहर की सुविधाओं को बनाए रखने में किया जाता है।

मुख्य बिंदु
शुल्क का नाम कब देना जरूरी? किसे देना पड़ता है?
सामुदायिक विकास शुल्क प्रॉपर्टी ट्रांसफर के समय (कुछ क्षेत्रों में) खरीदार/नया मालिक
संपत्ति टैक्स हर साल संपत्ति का मालिक

भारत के विभिन्न शहरों में स्थिति

कुछ शहरों में केवल एक बार प्रोसेसिंग फ़ीस देनी होती है, जबकि कुछ जगहों पर हर साल प्रॉपर्टी टैक्स देना अनिवार्य होता है। उदाहरण के लिए, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसी महानगरों में प्रॉपर्टी टैक्स सिस्टम अच्छी तरह लागू है। वहीं, छोटे कस्बों या गांवों में यह शुल्क कम या कभी-कभी नहीं भी लिया जाता। इसलिए प्रॉपर्टी खरीदने से पहले अपने इलाके की स्थानीय नीतियों की जानकारी जरूर लें।

4. ब्रोकर या एजन्ट का कमीशन

जब आप भारत में प्रॉपर्टी खरीदते हैं और इस प्रक्रिया में रियल एस्टेट ब्रोकर या एजेंट की मदद लेते हैं, तो आपको उनकी सेवाओं के लिए एक निश्चित कमीशन देना पड़ता है। यह कमीशन आम तौर पर कुल प्रॉपर्टी कीमत का 1% से 2% तक हो सकता है। यह शुल्क अलग-अलग शहरों और राज्यों में थोड़ा बहुत बदल सकता है, लेकिन ज़्यादातर जगहों पर यही रेंज रहती है।

ब्रोकर या एजेंट का काम होता है सही प्रॉपर्टी ढूंढना, डील करवाना, कागजी कार्रवाई में मदद करना और सौदे को पूरा करने में सहायता करना। उनके अनुभव और नेटवर्क की वजह से प्रॉपर्टी ढूंढना और खरीदना आसान हो जाता है, लेकिन इसके लिए उन्हें कमीशन दिया जाता है।

आइये एक साधारण तालिका के माध्यम से समझते हैं कि कमीशन किस तरह लिया जाता है:

प्रॉपर्टी कीमत कमीशन प्रतिशत कुल कमीशन राशि
₹50 लाख 1% ₹50,000
₹50 लाख 2% ₹1,00,000

कई बार ब्रोकर या एजेंट के साथ डील करते समय कमीशन दर पहले ही तय कर लेना बेहतर होता है ताकि बाद में कोई गलतफहमी न हो। ध्यान रखें कि यह फीस आपको अलग से देनी होती है और यह प्रॉपर्टी कीमत में शामिल नहीं होती।

इसलिए जब भी आप ब्रोकर या एजेंट के माध्यम से प्रॉपर्टी खरीदें, तो उनकी फीस के बारे में पूरी जानकारी जरूर लें और उसे अपने बजट में शामिल करें।

5. लोन प्रोसेसिंग फीस और कानूनी खर्चे

अगर आप प्रॉपर्टी खरीदने के लिए बैंक या किसी वित्तीय संस्था से होम लोन ले रहे हैं, तो आपको कई तरह के अतिरिक्त शुल्कों का भुगतान करना पड़ सकता है। ये शुल्क केवल घर की कीमत तक सीमित नहीं होते, बल्कि इसमें लोन प्रोसेसिंग फीस, वैल्यूएशन फीस, और कानूनी दस्तावेज़ों की जांच के लिए ली जाने वाली फीस भी शामिल होती है। नीचे टेबल में इन आम खर्चों की जानकारी दी गई है:

शुल्क का नाम विवरण
लोन प्रोसेसिंग फीस बैंक द्वारा लोन एप्लिकेशन प्रोसेस करने के लिए लिया जाने वाला शुल्क
वैल्यूएशन फीस प्रॉपर्टी के बाजार मूल्य का आकलन करने के लिए चार्ज की जाने वाली फीस
कानूनी दस्तावेज़ जांच शुल्क प्रॉपर्टी डॉक्युमेंट्स की वैधता और क्लियर टाइटल सुनिश्चित करने के लिए ली जाने वाली फीस

भारतीय बैंकों और फाइनेंस कंपनियों में ये शुल्क अलग-अलग हो सकते हैं। आमतौर पर, लोन प्रोसेसिंग फीस कुल लोन अमाउंट का 0.25% से 1% तक हो सकती है। इसी तरह, वैल्यूएशन और कानूनी दस्तावेज़ जांच शुल्क फिक्स्ड या वैरिएबल हो सकते हैं। इसलिए लोन लेने से पहले सभी शुल्कों की पूरी जानकारी बैंक या वित्तीय संस्था से लेना जरूरी है, ताकि बाद में कोई छुपा हुआ खर्च न रह जाए। इन खर्चों को ध्यान में रखकर ही अपनी प्रॉपर्टी खरीदने की प्लानिंग करें।