किराया आय पर टैक्स बचाने के सर्वोत्तम तरीके और वैध छूटें

किराया आय पर टैक्स बचाने के सर्वोत्तम तरीके और वैध छूटें

सामग्री की सूची

1. किराया आय पर टैक्स की मूल बातें

भारत में यदि आपके पास कोई संपत्ति है जिसे आप किराए पर देते हैं, तो उससे होने वाली आय को किराया आय (Rental Income) कहा जाता है। आयकर कानून के अनुसार, यह आय संपत्ति से आय (Income from House Property) श्रेणी में आती है। इस अनुभाग में हम जानेंगे कि किराया आय किसे कहते हैं, इसका वर्गीकरण कैसे होता है, और भारत में इस पर टैक्स की दरें क्या होती हैं।

किराया आय की परिभाषा

जब भी आप अपनी किसी इमारत या फ्लैट को दूसरे व्यक्ति या कंपनी को किराए पर देते हैं और बदले में नियमित रूप से राशि प्राप्त करते हैं, तो वह राशि आपकी किराया आय कहलाती है। इसमें आमतौर पर आवासीय मकान, व्यावसायिक संपत्ति या दुकान शामिल हो सकते हैं। ध्यान दें कि खाली जमीन (प्लॉट) से मिलने वाला किराया इसमें नहीं गिना जाता।

आयकर कानून के अनुसार वर्गीकरण

आयकर अधिनियम 1961 के तहत, आपकी कुल किराया आय का निर्धारण निम्नलिखित तरीके से किया जाता है:

आय का प्रकार विवरण
स्व-अधिवासित संपत्ति (Self-Occupied Property) यदि आपने संपत्ति स्वयं रहने के लिए रखी है और उसे किराए पर नहीं दिया है, तो इसकी अनुमानित किराया आय शून्य मानी जाती है।
किराए पर दी गई संपत्ति (Let Out Property) जिस संपत्ति को आप किराए पर देते हैं, उसकी वार्षिक प्राप्त राशि आपकी कर योग्य किराया आय मानी जाती है।
दो से अधिक संपत्तियाँ यदि आपके पास दो या दो से अधिक घर हैं, तो एक को स्व-अधिवासित मान सकते हैं, बाकी सभी को Let Out माना जाएगा और उनपर टैक्स लगेगा।

भारत में किराया आय पर कर की दरें

किराया आय आपकी कुल वार्षिक इनकम में जुड़ती है और सामान्य स्लैब रेट्स के अनुसार उसपर टैक्स लगता है। 2024-25 के लिए व्यक्तिगत कर स्लैब निम्नलिखित हैं:

वार्षिक आय (रुपये में) टैक्स दर (%)
0 – 2,50,000 शून्य (0%)
2,50,001 – 5,00,000 5%
5,00,001 – 10,00,000 20%
10,00,001 और उससे अधिक 30%

नोट: वरिष्ठ नागरिकों एवं नई टैक्स व्यवस्था के अंतर्गत अलग-अलग स्लैब हो सकते हैं। साथ ही आपको किराया आय से संबंधित कुछ कटौतियों एवं छूट का भी लाभ मिलता है, जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे। इस तरह आप समझ गए कि भारत में किराया आय क्या होती है, इसे कैसे वर्गीकृत किया जाता है और इसपर कौन-कौन सी टैक्स दरें लागू होती हैं।

2. मान्य छूटें और अनुमत कटौतियाँ

किराया आय पर टैक्स बचाने के लिए भारत सरकार ने कुछ वैध छूटें और कटौतियाँ प्रदान की हैं। इन नियमों को समझकर आप अपनी टैक्स देनदारी को कम कर सकते हैं। आइए जानते हैं किन-किन छूटों का लाभ लिया जा सकता है:

सेक्शन 24(b) – होम लोन के ब्याज पर छूट

अगर आपने किराये की संपत्ति खरीदने के लिए होम लोन लिया है, तो सेक्शन 24(b) के तहत आप सालाना अधिकतम ₹2,00,000 तक होम लोन के ब्याज पर छूट का लाभ उठा सकते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आपकी कुल किराया आय से ये ब्याज राशि घटाकर ही टैक्स लगेगा।

होम लोन ब्याज कटौती का उदाहरण

विवरण राशि (₹)
कुल किराया आय 4,00,000
होम लोन ब्याज (सेक्शन 24b) -1,80,000
टैक्सेबल इनकम 2,20,000

स्टैंडर्ड डिडक्शन (30%)

भारत में जो भी व्यक्ति किराए से कमाई करता है, उसे अपने किराया आय पर 30% स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलता है। यह कटौती मरम्मत, रखरखाव आदि के खर्चे को ध्यान में रखते हुए दी जाती है। इसके लिए आपको कोई दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं होती। यह हर किराया आय पर लागू होता है।

स्टैंडर्ड डिडक्शन का हिसाब-किताब

विवरण राशि (₹)
कुल किराया आय 4,00,000
30% स्टैंडर्ड डिडक्शन -1,20,000
बची हुई इनकम (डिडक्शन के बाद) 2,80,000

मरम्मत और रखरखाव पर छूटें

स्टैंडर्ड डिडक्शन में ही मरम्मत और रखरखाव का खर्च कवर हो जाता है। अगर किसी साल आपके भवन में खासा खर्चा हुआ है तो अलग से उसका दावा नहीं किया जा सकता क्योंकि 30% की कटौती इसी उद्देश्य से दी गई है। इसलिए आपको रसीद या बिल संभालने की जरूरत नहीं पड़ती।

संयुक्त स्वामित्व और कर लाभ

3. संयुक्त स्वामित्व और कर लाभ

संयुक्त स्वामित्व क्या है?

जब एक से अधिक व्यक्ति किसी संपत्ति के मालिक होते हैं, तो उसे संयुक्त स्वामित्व कहा जाता है। भारत में यह आम तौर पर पति-पत्नी, भाई-बहन या माता-पिता व बच्चों के बीच देखने को मिलता है।

संयुक्त स्वामित्व में टैक्स कैसे बचाएं?

यदि आपकी संपत्ति संयुक्त रूप से रखी जाती है, तो किराया आय को मालिकों के बीच उनके हिस्से के अनुसार बाँटा जा सकता है। इस तरह, हर मालिक अपनी आय सीमा के अनुसार टैक्स छूट का फायदा उठा सकता है।

संयुक्त स्वामित्व में टैक्स छूट का तरीका:

मालिक का नाम स्वामित्व में हिस्सा (%) किराया आय में हिस्सा (₹) टैक्सेबल इनकम (₹) टैक्स छूट/लाभ
राहुल शर्मा 50% 1,00,000 90,000 (मान लीजिए 10% कटौती) Section 24(a) के तहत स्टैंडर्ड डिडक्शन + बेसिक टैक्स छूट
सुमन शर्मा 50% 1,00,000 90,000 (मान लीजिए 10% कटौती) Section 24(a) के तहत स्टैंडर्ड डिडक्शन + बेसिक टैक्स छूट

किन बातों का ध्यान रखें?

  • स्वामित्व प्रमाण: सभी मालिकों का नाम रजिस्ट्री या बिक्री दस्तावेज़ में होना चाहिए।
  • बैंक ट्रांजैक्शन: किराए की रकम सभी मालिकों के खाते में उनके हिस्से के अनुसार आनी चाहिए।
  • ITR फाइलिंग: सभी मालिकों को अपने हिस्से की आय ITR में दिखानी होगी।
  • होम लोन इंटरेस्ट: यदि संयुक्त रूप से होम लोन लिया है तो ब्याज पर भी दोनों को अलग-अलग छूट मिल सकती है।
संक्षिप्त उदाहरण:

अगर एक घर पति-पत्नी के नाम पर है और दोनों ने बराबर निवेश किया है, तो किराया आय भी 50-50 बंटेगी और दोनों को अपने हिस्से पर टैक्स छूट मिलेगी। इससे कुल टैक्स देनदारी काफी कम हो जाती है।

4. एचआरए (हाउस रेंट अलाउंस) के लाभ

एचआरए छूट क्या है?

जो व्यक्ति किराए पर रहते हैं और अपनी सैलरी में हाउस रेंट अलाउंस (HRA) प्राप्त करते हैं, वे आयकर अधिनियम की धारा 10(13A) के तहत टैक्स छूट का लाभ उठा सकते हैं। इसका उद्देश्य किराएदारों को टैक्स में राहत देना है।

एचआरए छूट पाने के नियम

  • कर्मचारी को वेतन में HRA मिलना चाहिए।
  • वह व्यक्ति वास्तव में किराए के मकान में रह रहा हो।
  • यदि कर्मचारी अपने माता-पिता या रिश्तेदार के घर में किराए पर रहता है, तो भी HRA छूट मिल सकती है, बशर्ते वास्तविक भुगतान किया गया हो और उसके दस्तावेज हों।

एचआरए छूट की गणना कैसे होती है?

एचआरए की छूट निम्नलिखित तीनों में से जो भी कम होगा, उस पर दी जाती है:

मानदंड विवरण
प्राप्त HRA की कुल राशि वेतन पर्ची में दर्शाई गई HRA राशि
भाड़े का भुगतान – (सैलरी का 10%) वास्तविक किराया जो वेतन का 10% से अधिक है
सैलरी का 50% (मेट्रो शहर) / 40% (गैर-मेट्रो) अगर आप दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता में रहते हैं तो 50%, अन्यथा 40%

उदाहरण:

  • वार्षिक वेतन: ₹5,00,000
  • वार्षिक HRA: ₹1,20,000
  • वार्षिक किराया: ₹1,80,000
  • नॉन-मेट्रो शहर (40%)

छूट की गणना:

  1. प्राप्त HRA: ₹1,20,000
  2. किराया भुगतान – 10% सैलरी = ₹1,80,000 – ₹50,000 = ₹1,30,000
  3. सैलरी का 40% = ₹2,00,000

इन तीनों में से सबसे कम (₹1,20,000) टैक्स फ्री होगी। बाकी टैक्सेबल रहेगी।

आवश्यक दस्तावेज़ कौनसे हैं?

  • किराया रसीदें (Rent Receipts)
  • रेंट एग्रीमेंट/लीज डीड (यदि उपलब्ध हो)
  • मकान मालिक का पैन कार्ड (यदि वार्षिक किराया ₹1 लाख से अधिक है)
  • बैंक स्टेटमेंट्स/पेमेंट प्रूफ्स (यदि मांगे जाएं)
नोट:

अगर आप अपने माता-पिता या किसी रिश्तेदार को किराया देते हैं और HRA क्लेम करते हैं तो लेन-देन का प्रमाण होना चाहिए। गलत जानकारी देने पर आयकर विभाग कार्रवाई कर सकता है। इसलिए हमेशा सही एवं प्रमाणित दस्तावेज रखें।

5. किराया आय के वैध दस्तावेज़ीकरण और पारदर्शिता

आयकर सर्वेक्षण और ऑडिट से बचाव में दस्तावेज़ीकरण का महत्व

भारत में किराया आय पर टैक्स बचाने और लीगल छूटों का लाभ उठाने के लिए सही दस्तावेज़ीकरण बेहद जरूरी है। अगर आपके पास सभी जरूरी कागजात सही तरीके से तैयार हैं, तो आयकर विभाग के सर्वेक्षण या ऑडिट के समय कोई परेशानी नहीं होगी। नीचे भारतीय संदर्भ में जरूरी दस्तावेज़ों की सूची और उनका महत्व दिया गया है:

जरूरी दस्तावेज़ों की सूची और उनका महत्व

दस्तावेज़ महत्व
लीज़ एग्रीमेंट (Lease Agreement) यह दस्तावेज़ यह साबित करता है कि आप कानूनी रूप से संपत्ति को किराए पर दे रहे हैं, इसमें किराया राशि, अवधि और अन्य शर्तें स्पष्ट होती हैं। बिना लीज़ एग्रीमेंट के टैक्स डिडक्शन क्लेम करना मुश्किल हो सकता है।
किराया रसीदें (Rent Receipts) हर महीने किराएदार से प्राप्त होने वाले किराए की रसीद बनाएं और संभाल कर रखें। यह आपके आय का प्रमाण होता है और HRA क्लेम या टैक्स ऑडिट में काम आता है।
बैंक स्टेटमेंट्स (Bank Statements) अगर किराया बैंक ट्रांसफर द्वारा मिलता है, तो बैंक स्टेटमेंट्स को संभाल कर रखें। इससे कैश फ्लो का ट्रैक रखना आसान होता है और इनकम प्रूफ भी मिलता है।
पैन कार्ड डिटेल्स (PAN Card Details) रेंटल इनकम 50,000 रुपये प्रतिमाह से ज्यादा होने पर किराएदार द्वारा TDS काटा जाता है, ऐसे में पैन डिटेल्स देना जरूरी है।
संपत्ति के स्वामित्व संबंधी कागजात (Property Ownership Papers) यह दिखाते हैं कि संपत्ति आपकी ही है, जिससे टैक्स छूट या क्लेम करते समय कोई दिक्कत नहीं आती।
रखरखाव खर्चों की रसीदें (Maintenance Expense Receipts) इन्हें दिखाकर आप अपनी कुल टैक्सेबल इनकम घटा सकते हैं, इसलिए हर मरम्मत या रखरखाव की रसीद सुरक्षित रखें।

पारदर्शिता क्यों जरूरी है?

भारतीय टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता बनाए रखने से आप फर्जी दावों या गैर-कानूनी गतिविधियों से बच सकते हैं। जितना ज्यादा आप अपने रेंटल इनकम को डॉक्यूमेंट करेंगे, उतना ही आसानी से छूट व डिडक्शन क्लेम कर पाएंगे और भविष्य में किसी भी सरकारी जाँच या ऑडिट में बिना परेशानी के निकल जाएंगे। हमेशा ध्यान रखें: “सही दस्तावेज़ीकरण ही टैक्स बचत की पहली सीढ़ी है”.